September 21, 2013

जीवन एक कुटिया...


    जीवन कुटिया की भांति एक छोटा सा स्थान है.इसमें किसे आमंत्रित करना है, किसे नहीं,यह आपके ऊपर निर्भर है! निर्णय समय पर लेना है, वर्ना, फिर केवल छोभ शेष रह जायेगा.


     "छोटी  सी सूनी 
     कुटिया के बाहर,   
     आह्ट हुई, 
     तन्हाई अनुभव की 
     खिडकियां खोल दी.
     गलती की शायद 
     भीगी हवा आई,साथ में,  
     फूलो की सुगंध भी.
     धुप छाँव की आड़ में
     कुछ इशारे भी हुए.

 

     परन्तु तन्हाई 
     और भी बढ़ गयी. 
     काश!
     कुटिया के दरवाजे ही
     क्यों न खोल दिए!
     अन्दर 
     अँधेरी सी छाँव पर 
     थोड़ी धूप आ जाती,
     और,शायद 
     आ जाते तुम."

September 15, 2013

यह दिन छोटा क्यों?

संयोग वियोग दिन रात की भांति परस्पर गुंथे रहते हैं.लेकिन 
दिन बड़ा हो,और बड़ा हो-यह इच्छा अदम्य है,बढ़ती जाती है ………।

  "एक  संध्या 
  गंगा के किनारे
  मै बैठा था,
  देखा :
  किसी ने 
  किसी आशा में 
  एक दीप जला कर 
  जल पर तैरा दिया।
  निकट ही 
  किसी और ने भी
  कुछ कुम्हलाये फूल 
  जल में प्रवाहित किये।
  गंगा की लहरों पर 
  जलते दिए के साथ 
  उन कुम्हलाये फूलो को
  कुछ दूर 
  साथ-साथ बहते
  मैंने देखा.तभी, 
  उस दीप की रोशनी में  
  कुछ फूल 
  परिचित से लगे!"