सब कुछ बदल रहा है. अपने आस पास की हर वस्तु का रंग रूप बदल रहा है. लेकिन शायद यह परिवर्तन मेरे ही अन्दर आया है जिसे नाम देना कठिन लगा. मेरे अंतर में यह आवाज उठ रही है कि इस बदलाव का शब्दों से कोई सरोकार नहीं है !
मैंने 'चिड़िया' से कहा,
"मैं तुम पर एक
कविता लिखना चाहता हूँ"
चिड़िया ने मुझ से पूछा
" तुम्हारे शब्दों मैं
मेरे परो की रंगीनी है ?
मैंने कहा "नहीं"
"तुम्हारे शब्दों मैं मेरे कंठ का संगीत है ?
" नहीं"
"तुम्हारे शब्दों मैं
मेरे डैनो की उड़ान है?
"नहीं"
"जान है?"
"नहीं"
वह इठला कर बोली,"तब
तुम मुझ पर
कविता क्या लिखोगे?"
मैं कह उठा,
"पर तुमसे
मुझे प्यार है"
वो बोली,
"प्यार का
शब्दों से क्या सरोकार है?"
एक अनुभव हुआ नया !
मै मौन हो गया.