संयोग वियोग दिन रात की भांति परस्पर गुंथे रहते हैं.लेकिन
दिन बड़ा हो,और बड़ा हो-यह इच्छा अदम्य है,बढ़ती जाती है ………।
गंगा के किनारे
दिन बड़ा हो,और बड़ा हो-यह इच्छा अदम्य है,बढ़ती जाती है ………।
"एक संध्या
मै बैठा था,
देखा :
किसी ने
किसी आशा में
एक दीप जला कर
जल पर तैरा दिया।
निकट ही
कुछ कुम्हलाये फूल
जल में प्रवाहित किये।
गंगा की लहरों पर
जलते दिए के साथ
उन कुम्हलाये फूलो को
कुछ दूर
मैंने देखा.तभी,
उस दीप की रोशनी में
कुछ फूल
... kuchh phool parichit se lage... nice feel in the words.
ReplyDeleteSo thanks.Adjustment with life breeds either emotional poetry or photo poetry!
ReplyDeleteWat an ending..makes one pause for a moment and reflect back on your own life! :)
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