जीवन कुटिया की भांति एक छोटा सा स्थान है.इसमें किसे आमंत्रित करना है, किसे नहीं,यह आपके ऊपर निर्भर है! निर्णय समय पर लेना है, वर्ना, फिर केवल छोभ शेष रह जायेगा.
"छोटी सी सूनी
कुटिया के बाहर,
आह्ट हुई,
तन्हाई अनुभव की
खिडकियां खोल दी.
गलती की शायद
भीगी हवा आई,साथ में,
फूलो की सुगंध भी.
धुप छाँव की आड़ में
परन्तु तन्हाई
और भी बढ़ गयी.
काश!
कुटिया के दरवाजे ही
क्यों न खोल दिए!
अन्दर
अँधेरी सी छाँव पर
थोड़ी धूप आ जाती,
और,शायद
आ जाते तुम."
Small poetry but touchy.
ReplyDeleteGood ending on a positive note, only we all realize it very late!
ReplyDeleteVery touchy!so glad to see all ur poetries here!!
ReplyDeleteThanks for encouragement.
DeleteGOOD ONE
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